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सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


रामे.– मेरे पास रुपये कहाँ से आये? घर का हाल तुमसे छुपा थोड़े ही है।

विश्वे.– तो मैं सब रुपये देकर ज़मीन छोड़ाये लेता हूँ। जब तुम्हारे पास रुपये हों, आधा दे कर अपनी ज़मीन मुझसे ले लेना।

तीस साल गुज़र गये। विश्वेश्वरराय ज़मीन को भोगते रहे; उसे खाद– गोबर से खूब सजाया।

उन्होंने निश्चय कर लिया था कि ज़मीन न छोड़ूँगा। मेरा तो इस पर मोरूसी हक हो गया। अदालत से भी कोई नहीं ले सकता। रामेश्वरराय ने कई बार यत्न किया कि रुपये दे कर अपना हिस्सा ले लें; पर तीस साल से कभी १५॰) जमा न कर सके।

मगर रामेश्वरराय का लड़का जागेश्वर कुछ सँभल गया। वह गाड़ी लादने का काम करने लगा था और इस काम में उसे अच्छा नफा भी होता था। उसे अपने हिस्से की रात– दिन चिन्ता रहती थी। अंत में उसने रात– दिन श्रम करके यथेष्ट धन बटोर लिया और एक दिन चाचा से बोला– काका, अपने रुपये ले लीजिए। मैं अपना नाम चढ़वा लूँ।

विश्वे.– अपने बाप के तुम्हीं चतुर बेटे नहीं हो। इतने दिनों तक कान न हिलाये, जब मैंने सोना बना लिया तब हिस्सा बाँटने चले हो? तुमसे माँगने तो नहीं गया था।

विश्वे.– तो अब ज़मीन न मिलेगी।

जागे.– भाई का हक मारकर कोई सुखी नहीं रहता।

विश्वे.– ज़मीन हमारी है। भाई की नहीं।

जागे.– तो आप सीधे न दीजिएगा।

विश्वे– न सीधे दूँगा, न टेढ़े से दूँगा। अदालत करो।

जागे.– अदालत करने की मुझे सामर्थ्य नहीं है; पर इतना कहे देता हूँ कि ज़मीन चाहे मुझे न मिले; पर आपके पास न रहेगी।

विश्वे.– यह धमकी जा कर किसी और को दो।

जागे.– फिर यह न कहियेगा कि भाई हो कर बैरी हो गया।

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